आज के ब्लॉग पोस्ट में आपको Dividends(लाभांश) के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है,साथ ही अगर आप इस ब्लॉग पोस्ट को अंत तक पढ़ते हैं तो आपको Dividend संबंधी महत्वपूर्ण तिथियों और उनके इम्पॉर्टेन्स के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी l
नमस्कार दोस्तों,मैं वरुण सिंह आज के इस नए ब्लॉग पोस्ट में आप सभी का स्वागत करता हूं,मुझे पूरी उम्मीद है कि आप लोग मेरे ब्लॉग moneynestblog.com को अपने लिए उपयोगी पा रहे होंगे और अपने मित्रों के साथ भी अवश्य साझा कर रहे होंगे l
कंपनियों के कई फैसले उसके शेयरों पर असर डालते हैं। इन फैसलों को करीब से देखने पर आपको कंपनी की वित्तीय हालत सहित कई जानकारियां मिलती रहती हैं। इन फैसलों के आधार पर आप कंपनी के शेयर बेचने और खरीदने का निर्णय भी कर सकते हैं।
किसी कंपनी को एक साल में जो मुनाफा होता है उसको शेयरधारकों में बाँटा जाता है(हालांकि कोई कंपनी अनिवार्य रूप से ऐसा करे यह जरूरी नहीं है) ,इसे ही Dividend (लाभांश)कहते हैं। कंपनी अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देती हैं। डिविडेंड प्रति शेयर के आधार पर दिया जाता है।
उदाहरण के तौर मान लेते हैं की वर्ष 2013-14 में किसी XYZ कंपनी ने प्रत्येक शेयर पर 42/- रुपये का Dividend दिया था;Dividend को शेयर के फेस वैल्यू के प्रतिशत(%)के तौर पर भी देखा जाता है। जैसे XYZ कंपनी के उदाहरण में शेयर की फेस वैल्यू 5/- रुपये थी और डिविडेंड 42/- रुपये, यानी कंपनी ने 840% का डिविडेंड दिया; यानी 5*840%=42/- रुपए
हर साल डिविडेंड देना किसी कंपनी के लिए ज़रूरी नहीं होता।अगर कंपनी को लगता है कि साल का मुनाफा डिविडेंड(लाभांश) के रूप में बाँटने की जगह उस पैसे का इस्तेमाल नए प्रॉजेक्ट और बेहतर भविष्य के लिए करना चाहिए तो कंपनी ऐसा कर सकती है।
डिविडेंड हमेशा मुनाफे में से ही नहीं दिया जाता है।कई बार कंपनी को मुनाफा नहीं होता लेकिन उसके पास काफी नकद(कैश) पड़ा होता है। ऐसी स्थिति में कंपनी उस नकद में से भी डिविडेंड दे सकती है।
कभी-कभी डिविडेंड देना कंपनी के लिए सबसे सही कदम होता है। जब कंपनी के पास कारोबार के विस्तार का कोई सही रास्ता नहीं होता और कंपनी के पास काफी नकद पड़ा होता है, ऐसे में शेयरधारकों को Dividend देना अच्छा होता है। इससे शेयरधारकों का कंपनी पर भरोसा बढ़ता है और उन्हें एक Passive Income प्राप्त होती रहती हैl
डिविडेंड देने का फैसला AGM( Annual General Meeting ) में लिया जाता है, जहाँ कंपनी के डायरेक्टर्सकी मीटिंग होती हैं। डिविडेंड देने की घोषणा होने के साथ ही डिविडेंड नहीं दे दिया जाता है;क्योंकि शेयर की खरीद और बिक्री स्टॉक एक्सचेंज पर लगातार चल रही होती है और ऐसे में ये पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है कि डिविडेंड किसे दिया जाए और किसे नहीं।
डिविडेंड की संपूर्ण प्रक्रिया निम्नलिखत बिन्दुओं के अंतर्गत समझा जा सकता हैं ।
डिविडेंड डेक्लरेशन डेट-
Dividend डिक्लरेशन की तारीख, वह दिन है जब AGM( Annual General Meeting )की बैठक होती है और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स डिविडेंड को मंजूरी देते हैं।
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रिकॉर्ड डेट (Record Date)-
Dividend की रिकॉर्ड डेट वह दिन होता है जिस दिन कंपनी अपने रिकॉर्डस को देखती है और उस रिकॉर्ड में जिन भी शेयरधारकों के नाम होते हैं उन्हें डिविडेंड देने का फैसला कंपनी द्वारा किया जाता है।आमतौर पर डिविडेंड की घोषणा और रिकॉर्ड डेट के बीच कम से कम 30 दिनों का फासला(गैप)होता है।
एक्स डिविडेंड डेट (Ex-Date/ Ex-Dividend Date)-
Dividend की Ex-Date आमतौर पर रिकॉर्ड डेट से दो कारोबारी दिन(वर्किंग डेज़) पहले का होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भारत में फिरहाल वर्तमान में T+2 के आधार पर यानी सौदे (स्टॉक खरीदना या बेंचना)के दो दिन बाद सेटेलमेंट होता है। तो अगर आपको किसी कंपनी का डिविडेंड चाहिए तो आपको वह शेयर/स्टॉक Ex-Dividend Date के पहले खरीदना होता है।तभी आपको Dividend का लाभ मिलने की पूरी गारंटी रहेगी l
डिविडेंड पे आउट डे (Dividend Payout Date)-
Dividend Pay Out के तारीख के दिन शेयरधारकों को डिविडेंड का भुगतान कंपनी द्वारा डायरेक्ट उनके प्राइमरी बैंक अकाउंट में कर दिया जाता है,अगर किंही करणों से Dividend शेयर धारक को नहीं प्राप्त होता है तो उन्हें उस कंपनी से फोन द्वारा,ईमेल द्वारा या Twitter द्वारा संपर्क करना चाहिए;इस परिस्थिति में कंपनी द्वारा अपने स्टॉक होल्डर को Dividend का भुगतान डिमांड ड्राफ्ट द्वारा किया जाता है l
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कम डिविडेंड (Cum Dividend)-
Ex-Dividend की तारीख तक शेयरों को कम डिविडेंड (Cum Dividend) कहा जाता है।
जब शेयर का Ex-Dividend हो जाता है तो उसकी कीमत में आमतौर पर Dividend की राशि के बराबर की गिरावट आ जाती है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी XYZ कंपनी का शेयर 250/- रुपये पर है और XYZ कंपनी ने 5/- रुपये का डिविडेंड देने का ऐलान किया है तो Ex-Dividend की तारीख पर शेयर की कीमत 5/- रुपए गिर कर 245/- रुपये तक आ सकती है क्योंकि अब कंपनी के पास ये 5/- रुपये नहीं होते हैं।
Dividend वित्त वर्ष के दौरान कभी भी दिये जा सकते हैं।अगर Dividend साल के बीच में दिया गया तो उसे अंतरिम डिविडेंड और अगर साल के अंत में दिया गया तो उसे फाइनल डिविडेंड कहा जाता है।
तो,यह थे Dividend संबंधी कुछ मत्वपूर्ण तथ्य जिनको लेकर निवेशकों को काफी कन्फ़्युजन रहता है,आशा है की यह पोस्ट आपके Dividend संबंधी काफी कन्फ़्युजन्स को दूर करने में सफल रही होगी l
दोस्तों मुझे पूरी उम्मीद है की यह पोस्ट आपको अच्छी लगी होगी, अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है और आपने इसे अपने लिए उपयोगी पाया है तो कृपया इस पोस्ट को अपने मित्रों के साथ अधिक से अधिक सोशल प्लेटफार्मों पर साझा करें जिससे अन्य लोग भी लाभांवित हो सकें l
इस पोस्ट में इतना ही, पोस्ट को पूरा पढ़ने और अपना कीमती समय देने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद ! मिलते हैं नेक्स्ट पोस्ट में,तब तक के लिए नमस्कार ।
Q.Dividend स्टॉक के मार्केट प्राइस पर दिया जाता है या फ़ेस वैल्यू पर?
Ans-Dividend स्टॉक के फ़ेस वैल्यू पर पर दिया जाता है l
Q.Dividend का भुगतान कंपनी द्वारा कहाँ पर किया जाता है?
Ans-Dividend का भुगतान कंपनी द्वारा डायरेक्ट स्टॉक होल्डर के प्राइमरी बैंक अकाउंट में किया जाता हैl
Q.Dividend का भुगतान अगर कंपनी द्वारा बैंक अकाउंट में न प्राप्त हो,तो क्या करना चाहिए?
Ans-स्टॉक होल्डर को कंपनी से फोन द्वारा,ईमेल द्वारा या Twitter द्वारा संपर्क करना चाहिए l
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Good job