इस टॉपिक यानी Share Buy Back पर जब मैंने पहली बार तब लिखने की सोची थी, तब INFOSYS ने अपना Share Buy Back प्रोग्राम घोषित किया था, परंतु उस समय कुछ पर्सनल कारणों से मैं समय नहीं निकाल पाया अब जब एक बार IEX ने पुनः Share Buy Back की घोषणा की है तो शायद इस विषय पर लिखने का यही सही समय है.
इस ब्लॉग पोस्ट में मैं अपने सुधि पाठकों को यह बताने का प्रयास करूंगा कि-
- Share Buy Back का क्या अर्थ है?
- Share Buy Back के क्या लाभ हैं?
- Share Buy Back कितने प्रकार का होता है?
- Share Buy Back के प्रकारों में से कौन सा शेयर धारकों के लिए बेहतर होता है?
Share Buy Back क्या है?
Share Buy Back वास्तव में शेयर जारी करने की विपरीत प्रक्रिया है, इसमें कंपनी घोषणा करती है कि वो शेयर धारकों को पैसे देकर अपने कंपनी के शेयर उनसे वापस शेयर खरीद लेगी.
कंपनी Share Buy Back क्यों करती है?
दरअसल, Share Buy Back निवेशक के हित में माना जाता है इसके कई कारण हो सकते हैं; जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं-
1. जब कंपनी के पास काफी Surplus Cash हो, तो वो Share Buy Back के द्वारा उस Cash को use करती है.
2. जब कंपनी को लगता है कि उसके शेयर का बाजार भाव उचित मूल्य से( उचित मूल्य से तात्पर्य कंपनी के अनुसार उचित मूल्य से है) काफी कम है तो वो शेयर के भाव को Support करने के लिए Buy Back की घोषणा करती है.
3. Buy Back के माध्यम से कंपनी अपने द्वारा जारी कुल शेयर की संख्या में कमी लाती है, (क्योंकि इस प्रक्रिया में पूर्व में Issued Share वापस खरीद लिए जाते) जिससे प्रमोटर का हिस्सा पर्सेंटेज(%) में बढ़ जाता है (क्योंकि कुल जारी शेयर ही कम हो गए है). प्रमोटर का हिस्सा बढ़ने से भविष्य में कंपनी के Hostile Takeover के Chances नहीं रह जाते.
4. Share Buy Back अतरिक्त cash को शेरेधारकों को देने का डिविडेंड की तुलना में अधिक Tax Efficient तरीका है क्योंकि अधिकांश डिविडेंड प्रमोटर पाते हैं और उन्हें डिविडेंड पर 30% tax देना पड़ता है जबकि यदि बायबैक से शेयर प्राइस बढ़े भी तो Capital Gain होगा .
Share Buy Back से शेयर धारक को क्या फायदा होता है?
- किसी Share का Buy Back अधिकांशतः शेयर के बाजार भाव से प्रीमियम पर होता है. तो शेयर धारक को अपने शेयर का बेहतर मूल्य मिल पाता है.
- शेयर के Fundamental में ये चेंज आता है कि कंपनी की EPS बढ़ जाती है .
EPS= EARNING / TOTAL NO .OF SHARE |
NOTE-अब चूंकि शेयर की कुल संख्या बायबैक के बाद कम रह गई है तो EPS बढ़ ही जाएगा.
- Share Buy Back कंपनी का अपने शेयर पर भरोसा दर्शाता है .ये दर्शाता है कि कंपनी के अनुसार उसके शेयर फंडामेंटली अच्छे हैं तभी वह उन्हें बाजार भाव से अधिक पर खरीद रही है.
Buy Back कितनी तरह का होता है?
Share Buy Back दो तरह का होता है
- Tender Route द्वारा Buy Back
- Open Market Purchase द्वारा Buy Back
Tender Route द्वारा Buy Back
इस तरीके में दो चीजें निश्चित है-
पहला कंपनी कितना पैसा बायबैक पर खर्च करेगी और दूसरा की कंपनी एक शेयर का बायबैक किस मूल्य पर करेगी.
इसमें शेयर धारक को अपने शेयर टेंडर करने पड़ते हैं. इसमें एक और महत्वपूर्ण चीज होती है ACCEPTANCE RATIO.
यह इस आधार पर निर्धारित होता है कि कितने लोग अपने शेयर टेंडर करते हैं और वास्तव में कंपनी को कितने शेयर खरीदने है .यह RATIO ये बताता है कि आपके द्वारा टेंडर शेयर में से वास्तव में कंपनी कितने शेयर खरीदेगी.
हाल ही में हुआ TCS का BUYBACK ,TENDER ROUTE द्वारा बायबैक का उदाहरण है.
इसमें यदि प्रमोटर बायबैक में PARTICIPATE न करे तो बायबैक और बेहतर हो जाता है क्योंकि इस स्थिति में ACCEPTANCE RATIO अधिक होने की संभावना रहती है.
Open Market Purchase द्वारा Buy Back
इसमें कंपनी यह बताती है कि वह Buy Back पर कितना धन खर्च करना चाहती है, कंपनी एक मूल्य भी बताती है जिस पर वह Share Buy Back करना चाहती है. ध्यान रखने वाली बात है कि यह मूल्य अधिकतम मूल्य होता है .
जैसे यदि IEX का बायबैक प्राइस 150 ₹ बताया गया है तो यह वह अधिकतम मूल्य है जो कंपनी शेयर का Buy Back में देने को तैयार है कंपनी इस से कम मूल्य पर भी शेयर ले सकती है.
इस तरह के बायबैक में दूसरी विशेषता ये है कि कंपनी एक समय सीमा के भीतर OPEN MARKET यानि खुले बाजार से शेयर खरीदती रहती है.
अतः इस तरह के बायबैक में न तो ये निश्चित है कि कंपनी कितने पर शेयर वापस खरीदेगी न ये निश्चित है किस शेयर धारक का शेयर खरीदेगी, कंपनी एक सामान्य खरीदार की भांति खुले बाजार से शेयर को खरीदती है। बस दो चीजें तय रहती है कि कंपनी कुल कितना धन बायबैक पर खर्च करेगी और एक शेयर का अधिकतम कितना मूल्य देगी.
दोनो तरीकों में कौन सा शेयर धारक के लिए बेहतर है?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि टेंडर रूट वाला Buy Back शेयर धारक के लिए बेहतर है क्योंकि ये यह गारंटी देता है कि यदि वो अपना शेयर टेंडर करेगा तो उसे एक निश्चित मूल्य कंपनी की तरफ से मिलेगा ( एक्सेप्टेंस रेश्यो के अनुसार ही कंपनी टेंडर शेयर में से शेयर खरीदेगी)
,जबकि ओपन मार्केट परचेज में किसी निश्चित मूल्य पर शेयर खरीद की कोई गारंटी नहीं है, इसमें बस कंपनी के रूप में एक बड़ा खरीदार बाजार में आ जाता है जो शेयर के प्राइस को सपोर्ट करता है.
अंततः हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि Buy Back शेयर धारक के लिए लाभप्रद होता है एक तरीके में तुरंत लाभ हो जाता है जबकि दूसरा तरीका LONG TERM में फायदेमंद है (ओपन मार्केट परचेज में कंपनी कम धन में अधिक शेयर बायबैक कर लेती है)
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